Friday, July 5, 2013

जिंदगी बनाम यात्रा

उलझनों के बीच से
गुज़रती जिंदगी !
कब बेबसी का शिकार होजाती है!
और चलती रहती है यात्रा!
मंजिलो की तलाश में!
मंजिल, जो है ही नहीं
और मौत तो मंजिल है भी नहीं!
वो तो चिन्ह है यात्रा के ख़तम होने का!
फिर पाना क्या है जिंदगी को!
हर कोई क्या पाना चाहता है!
प्रश्नों का दोर चलता रहता है!
वक़्त मगर गुज़र जाता है!
यात्रा भी ख़तम हो जाती है!
मंजिल भी मिल नहीं पाती है!
और पाने को क्या था ..
प्रशन , प्रशन रह जाता है!

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