कुछ उलझते हुए से
कुछ खुद से लडते हुए से
विचारो का युद्ध हूँ मैं!
कभी बोझिल हुआ तो
नाउमीदी का दरवाज़ा
खटखटा दिया!
दरवाज़ा कभी खुला नहीं!
बस उम्मीद रही के
लड़ते है विचार
खुद थक कर बेठ जाएंगे !
मगर मेरे चुपचाप बेठ जाने पर
हावी हो जाते है मुझ पर!
बस उम्मीद है कभी
इस जनम में न सही
पर किसी जनम में तो
यह मेरे अपने होंगे
मेरे साथ होंगे
मेरे है तो मेरा कहा मानेगे
मेरे खिलाफ मेरा अपने
विचार मुछसे तो नहीं युद्ध करेंगे!!!
कुछ खुद से लडते हुए से
विचारो का युद्ध हूँ मैं!
कभी बोझिल हुआ तो
नाउमीदी का दरवाज़ा
खटखटा दिया!
दरवाज़ा कभी खुला नहीं!
बस उम्मीद रही के
लड़ते है विचार
खुद थक कर बेठ जाएंगे !
मगर मेरे चुपचाप बेठ जाने पर
हावी हो जाते है मुझ पर!
बस उम्मीद है कभी
इस जनम में न सही
पर किसी जनम में तो
यह मेरे अपने होंगे
मेरे साथ होंगे
मेरे है तो मेरा कहा मानेगे
मेरे खिलाफ मेरा अपने
विचार मुछसे तो नहीं युद्ध करेंगे!!!
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